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Tuesday, September 30, 2014

माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ (भगती वंदना-6)

माया मोहक मकड़जाल मे फँसि अहँ केँ बिसरेलहुँ
माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ ।

हम अवोध सुत हमरा सदिखन ज्ञानक रहल अभाव
जिनगी पूर्ण बिता के जननी आँखि फूजल अछि आब
चरण-शरण तजि अहँकेर माता हम बहुते पछतेलहुँ
माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ ।

की आबहु नहि हे माँ अपने करब हमर उद्धार
आनक नहि आशा अछि कनियो स्वार्थी सब संसार
रहि रहि मोन पड़ैत अछि हमरा जे हम पाप कमेलहुँ
माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ ।

विनती सुनी तरूण सुत केर माँ दया दृष्टि दर्शाबी
बूझि अनाथ नेना हे माता आबहु कोर लगाबी
अहाँ सँ बढ़ि केँ नहि क्यो अप्पन ई ने हम बुझि पेलहुँ
माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ ।


मलाढ़ : 25.04.2003

Monday, September 29, 2014

अहाँक महिमा अपार हे भवानी (भगवती वंदना-5)

सिंह पर सवार कयल असुरक संहार अहँक महिमा अपार हे भवानी
के ने जग मे जनै अछि कहू माँ शास्त्र वर्णित अहाँ केर कहानी ।

देव मानव जतेक सब रहै छथि जथि जपैतँ अहँक महिमा अनेक ब्रह्माणी
के नहि जनैत अछि कहू माँ शास्त्र वर्णित अहाँ केर कहानी ।

करी गिरि पर निवास हरी सब केर भव त्रास अहीं जगती केर आस हे शिवानी
के ने जग मे जनै अछि कहू माँ शास्त्र वर्णित अहाँ केर कहानी ।

हे विश्वक जननी ! अहाँ दुर्गतहरणी !  लिअ अपना शरण सर्वाणी
के ने जग मे जनै अछि कहू माँ शास्त्र वर्णित अहाँ केर कहानी ।

नाह तरूणक मझधार खींचि लगबू किनार करू आबहु विचार कल्याणी
के ने जग मे जनै अछि कहू माँ शास्त्र वर्णित अहाँ केर कहानी ।

 मलाढ़ : 05.06.1988



Sunday, September 28, 2014

जननी हरू हमर दुख भारी (भगवती वंदना-4)

जननी हरू हमर दुख भारी
क्षमा करी आबहु माँ हमरा सब अपराध बिसारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।

पापक असह बोझ सँ धरतीक मन अछि जनु अकुलायल
दुर्जन केर अत्याचारें सज्जन अछि डरे नुकायल
करबा ल परित्राण जगत केर दुर्जन केँ संहारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।

एहि स्वार्थी जग सँ हम जननी भेलहुँ आइ निराश
एक अहीं पर अछि हे जननी हमर अटल विश्वास
होयत पूर्ण कोना माँ मन केर आसक रिक्त बखारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।

अहंकारवश मन आन्हर बनि आइ हमर बौरायल
उचित अनुचितक ज्ञान जेना माँ सबटा हमर बिलायल
बीच भंवर मे जिनगीक नैया, मैया अहाँ सम्हारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।

लोभ-मोह-मद केर जंगल मे हम छी आइ हरायल
हमरा मन दर्पण मे लागय पापक मैल समायल
सुत तरूण क विनती सुन जननी पापक मैल पखारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।


अन्दौली : 16.09.2003

Saturday, September 27, 2014

हे माए उग्रतारा (भगवती वंदना-3)

माँ उग्रताराक मूर्ति, महिषी,सहरसा
साभार- 
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हे माए उग्रतारा ! सब अछि अहीं केँ भारा
अछि भंवर बीच नैया, मैया करू किनारा ।

गेलहुँ जतय कतहु हम सगरो सँ हारि एलहुँ
जिनगी अपन ई मैया व्यर्थे जेना गमेलहुँ ।
हम छटपटा रहल छी माँ दी अपन सहारा
हे माए उग्रतारा! सब अछि अहीं केँ भारा ।

माँ कृपादृष्टि राखी अछि प्रार्थना हमर ई
कय दी सुलभ हमर माँ जिनगीक कठिन डगर ई ।
हम डगमगा रहल छी, माँ दी अपन सहारा
हे माए उग्रतारा! सब अछि अहीं केँ भारा ।

आनक भरोस मन मे बाँचल ने शेष हमरा
पुनि छोड़ि माँ अहाँ केँ कहबै कहू त ककरा ।
दुख मे तरूण ने ककरो क्यो बंधु पुत्र दारा
हे माए उग्रतारा! सब अछि अहीं केँ भारा ।
अछि भंवर बीच नैया, मैया करू किनारा ।। 
           

बेलदारा : 05.05.1995

हे भगवती माँ छिन्नमस्ता (भगवती वंदना-2)

हे भगवती ! माँ छिन्नमस्ता ! अछि हमर शत-शत नमन ।
ल आस आ विश्वास एलहुँ जननी हम अपनेक शरण ।

अहँक ख्याति माय पसरल सकल एहि संसार मे
नाह हुनकर पार लगबी जिनक हो मझधार मे ।
करी माँ कल्याण हुनकर जे अहँक पूजथि चरण
हे भगवती ! माँ छिन्नमस्ता ! अछि हमर शत-शत नमन ।

मन सँ मेटय दुर्व्यसन सद्ज्ञान केर विस्तार हो
करी किछु जननी एहेन जहि सँ हमर उद्धार हो ।
हो सदति सद्भाव प्रेरित माँ हमर सब आचरण
हे भगवती ! माँ छिन्नमस्ता ! अछि हमर शत-शत नमन ।

कहब की बेसी हे जननी हमर एतबय प्रार्थना
दी एहेन माँ भक्ति हमरा करी नित हम अर्चना
अहींक पद पूजन मे जननी हो हमर जीवन मरन
हे भगवती ! माँ छिन्नमस्ता ! अछि हमर शत-शत नमन ।


छिन्नमस्ता मंदिर,रजरप्पा आ बोकारो
26 एवं 27 अक्टूवर 2000

Thursday, September 25, 2014

अम्बे ! अम्बे ! जगदम्बे ( भगवती वंदना-1)

अम्बे ! अम्बे ! जगदम्बे एलहुँ अहाँ के दुआरि
मैया आबहु शरण लगाय लिअ हमरो उबारि ।

हम छी पापी परम महान, उर मे पसरल अछि अज्ञान
मैया दी आबहु सदज्ञान,  उर मे ज्ञानक दीप पजारि ।

नाह अछि जिनगी केर मझधार,  मैया लागत कोना पार
आबहु करू हमर उद्धार , जननी जिनगी क नाह सम्हारि ।

जानी हम नहि नीक बेजाय, आसरा एक अहीं के माए
बूझी उचित अहाँ जे माए, हमरा हित से करब विचार ।

माय हम बनलहुँ पूत कपूत, कयल सब अधलाहे करतूत
मैया दी आबहु आशीष, तरूणक सब अपराध बिसारि ।


बाबा बैद्यनाथक डेरा, साहिबगंज
03.11.1992


Saturday, September 13, 2014

समय विपरीत भागै ए

समय विपरीत भागै ए
दिन लगै अछि जेना सूतल राति जागै ए
समय विपरीत भागै ए ।

श्रम करय जे रहय तकरे जेब खाली
आलसी सूदखोर केर मुख रहय लाली
खटि मरय क्यो बैसि क्यो बस मौज मारै ए
समय विपरीत भागै ए ।

स्वार्थ केर हाथें बिकायल आइ सत्ता
सत्य सँ बढ़ि केँ जतय फूसिक महत्ता
क्यो अपन नहि सब जेना विरान लागै ए
समय विपरीत भागै ए ।

सुकन्या छथि जे तिनकर एहिबात ढाठल
लगय अछि जिनगी जेना हो गाछ काटल
पाइ केर डंका चतुर्दिक आइ बाजै ए
समय विपरीत भागै ए ।

अहिंसा केर देश मे हिंसा समायल
प्रेम केर गहना तरूण लागय हरायल
पूब डूबल सुरूज पच्छिम ऊगि आबै ए
समय विपरीत भागै ए ।


सुपौल : 08.05.1987 

फोटो

विभूति आनंद, भीमनाथ झा, तारानन्द झा 'तरूण' आ फूलचंद्र झा 'प्रवीण'
[ फोटो 21.03.2014 केँ दरभंगा मे 
विभूति आनंदक डेरा पर लेल गेल छल ]

Friday, September 12, 2014

कर्म जे हो मुदा सब निपुण बात मे

कर्म जे हो मुदा सब निपुण बात मे
हाथ सुतरय अपन सब रहय घात मे ।

के सज्जन के दुर्जन ई जानब कठिन
अछि कौवे अधिक हँस केर पाँत मे ।

होइछ सगिरो पुछारी एखन फूसि केर
सत्य कानय कतहु ठाढ़ भकात मे ।

वैह नेता सफल अछि एखन देश मे
हो कि अन्तर जकर मोन आ गात मे ।

बढ़ि रहल जग एखन चैलि सौ केर धेने
अछि फँसल देश एखनहु छह सात मे । 

बहि रहल अछि हवा आइ उनटे तरूण
हाथ कंगन ससरि ऐल अछि लात मे ।


14-07-1994 : मलाढ़.
कर्णामृत ( फरवरी-मार्च, 1997 ) 
मे प्रकाशित ।



Sunday, September 7, 2014

फुदकि-फुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी

फुदकि-फुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश
फुदकैत रहू अहूँ जिनगी मे मेटू सभक कलेश ।

बिनु बजनहि किछु कहय अहाँ सँ नित स्वर्णीम विहान
रहय अहूँक मन सदति पहिरने स्वर्णीम नव परिधान ।
रहल करू नित अहाँ मुदितमन घर हो या परदेश
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।

माथ ऊँच क सदति अहाँ सँ अविचल कहय पहाड़
रही बनल दृढ़ब्रती लक्ष्य हित सहि दुख बिपति हजार ।
ल संकल्प जगत कल्याणक पथ मे करू प्रवेश
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।

कोइली कुहकि-कुहकि सुनिवय अछि सदति मधुर संगीत
ओ नित कहय अहाँ सँ बाजू, बोल मधुर सन मीठ ।
बसल रही नित अहाँ जाहि सँ सब केर हृदय प्रदेश
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।


पीजड़ा केर सुगा बाजय अछि, ओ जे अहाँ सीखाबी
कहय अहाँ सँ कठिन काज जे तकरहु सरल बनाबी ।
सहजहिं अभ्यासे सब संभव विद्या-बुद्धि विशेष
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।

बाजय कल-कल स्वर मे सदिखन गतिमय सरिता नीर
क मन स्वच्छ बढ़ी निज पथ पर अहूँ हरय जग पीर ।
सीखी किछु नित तरूण प्रकृति सँ निधि अछि जकर अशेष
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।

अन्दौली : 16.09.03



Saturday, September 6, 2014

महगी ईजोतक अछि सस्ता अन्हार जतय

महगी ईजोतक अछि सस्ता अन्हार जतय
रहतय ओतय लोक कोना जातिक दीवार जतय ।

गुण केर जे ग्राहक अछि तकरा के चिन्हि सकत
सब तरि अछि दुर्गुण केर लागल बजार जतय ।

अन्न पानि वायु की बाँचल प्रदूषण सँ ?
बाँचि सकत प्राण कोना विष केर भंडार जतय ।

प्रगतिक जे नारा अछि लागय सब फूइस जोकाँ
घृणा द्वेष हिंसा अछि जिनगीक आधार जेतय ।

मन केर जे व्यथा तरूण ककरा सुनायब हम
कानक बहीर संग निष्ठुर संसार जतय ।

सुपौल : 04.08.1996 मध्यरात्रि


Thursday, September 4, 2014

शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार

धन्य देश केर प्रजातंत्र ई धन्य एकर सरकार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

वाणी सँ चिन्तित गामक हित लागय सदिखन सत्ता
मुदा विकासक जोत पहुँचि पाबय नहि गामक हत्ता
घर घर मे जहिठाँ भरहलै स्वार्थक मंत्रोच्चार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

खुनि रहल सब एक दोसरक घर केर आगू खत्ता
अद्भुत अर्थतंत्र अछि जहिठाँ बेतन सँ बढ़ि भत्ता
कर्तव्यक परवाह नै ककरो चाहय बस अधिकार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

वोटक खातिर नेता जहिठाँ रचय प्रपंचक जाल
सम्प्रदाय आ जातिवाद केर आगि लेस तत्काल
मेटा समाज क प्रेम शांति सत्ता पकड़य रफ्तार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

कतहु हवाला कतहु घोटाला देशक निकलि रहल दिवाला
अमीयक भरमे पीबी रहल सब जहिठाँ छाँकी भरि भरि हाला
उलटे जतय बसात बहय अछि उलटे सब व्यवहार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

गाजा, चरस, अफीमक संगहि रूचिकर लागय भांग
नेना तरूणक तरूण बूढ़ के खींचय जहिठाँ टाँग
जतय दहेजक बलि चढ़ि नारी करथि नित्य चित्कार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

सुपौल : 4.08.1996

Wednesday, September 3, 2014

भोरुक एक शब्द चित्र/सांझुक एक शब्द चित्र

भोरुक एक शब्द चित्र     

नेना सब बाजि उठल, भोर भेल भोर भेल
सुरूज सिपाही देखि, रातुक तम चोर गेल
चुनमुन चिड़ैया केर, एतबय मे शोर भेल
चहुदिश अहि धरती पर, झक झक ईजोर भेल !!

सांझुक एक शब्द चित्र

डुबतहि सुरूज केर, सगरो अन्हार भेल
जग केर सब जीव जन्तु, अपन घर दुआर गेल
लागि रहल धरती पर, एहिखन जनु एहने सन
फूसिक प्रहार सँ, सत्यक संहार भेल !!

मलाढ़ : 20.07.1995