हे मातु महालक्ष्मी देवी
मम नमस्कार स्वीकार करू
हम अहिंक अबोध अकिंचन
सुत हे माए हमर उद्धार करू ।
हे सिन्धुसुता हे विष्णुप्रिया
हे जगत विदित धनदा देवी
हे माँ वरदे वरदान दिअ
बनि रही अहँक हम पद सेवी
हे बुद्धिप्रदे सदबुद्धि
दिअ सब अज्ञानक अन्हार हरू
हे मातु महालक्ष्मी देवी
मम नमस्कार स्वीकार करू ।
की कही अधिक हम कहू माए
! की ऐहन अहाँ जे नहि जानी
के छोड़ि अहाँ के पोछि सकत
माँ नोर हमर जहिठाँ कानि
हे जननी ! शरण में लगा
लिअ अछि अर्जी हमर विचार करू
हे मातु महालक्ष्मी देवी
मम नमस्कार स्वीकार करू ।
हे आदि-अन्त रहिते देवी
! हे आदिशक्ति ! हे महेश्वरी
हे कमलासने ! श्वेतवसने
! हे श्रीपीठे ! हे सुरेश्वरी !
हे जननी ! दया केर
दृष्टि हेरी सुत ‘तरुण’ क बेड़ा पार करू
हे मातु महालक्ष्मी देवी
! मम नमस्कार स्वीकार करू ।मलाढ़ : 03.05.1988