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Thursday, September 25, 2014

अम्बे ! अम्बे ! जगदम्बे ( भगवती वंदना-1)

अम्बे ! अम्बे ! जगदम्बे एलहुँ अहाँ के दुआरि
मैया आबहु शरण लगाय लिअ हमरो उबारि ।

हम छी पापी परम महान, उर मे पसरल अछि अज्ञान
मैया दी आबहु सदज्ञान,  उर मे ज्ञानक दीप पजारि ।

नाह अछि जिनगी केर मझधार,  मैया लागत कोना पार
आबहु करू हमर उद्धार , जननी जिनगी क नाह सम्हारि ।

जानी हम नहि नीक बेजाय, आसरा एक अहीं के माए
बूझी उचित अहाँ जे माए, हमरा हित से करब विचार ।

माय हम बनलहुँ पूत कपूत, कयल सब अधलाहे करतूत
मैया दी आबहु आशीष, तरूणक सब अपराध बिसारि ।


बाबा बैद्यनाथक डेरा, साहिबगंज
03.11.1992


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