अम्बे ! अम्बे
! जगदम्बे एलहुँ अहाँ के दुआरि
मैया आबहु शरण लगाय लिअ हमरो उबारि ।
हम छी पापी परम महान, उर मे पसरल अछि अज्ञान
मैया दी आबहु सदज्ञान, उर मे ज्ञानक दीप पजारि ।
नाह अछि जिनगी केर मझधार, मैया लागत कोना पार
आबहु करू हमर उद्धार , जननी जिनगी क नाह
सम्हारि ।
जानी हम नहि नीक बेजाय, आसरा एक अहीं के माए
बूझी उचित अहाँ जे माए, हमरा हित से करब विचार
।
माय हम बनलहुँ पूत कपूत, कयल सब अधलाहे करतूत
मैया दी आबहु आशीष, तरूणक सब अपराध बिसारि ।
बाबा बैद्यनाथक डेरा, साहिबगंज
03.11.1992
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