एहि ब्लागक कोनो सामग्री केर अव्यावसायिक आ दुर्भावना सँ रहित उपयोग करबा मे कोनो हर्ज नहि अछि । शर्त एतबै जे स्रोतक आ रचनाकारक स्पष्ट उल्लेख करी । तरूण निकेतनक पता पर अथवा ई-मेल पता-tarunniketan@gmail.comपर एकर सूचना अवश्य पठा दी । कोनो सामग्रीक उपयोग जाहि रूप मे भेल होई से पठा सकी तँ नीक लागत ।

Tuesday, August 25, 2015

‘भारती-मंडन’ पत्रिकाक प्रकाशनक प्रस्तावना

भारती-मंडन पत्रिकाक प्रकाशनक प्रस्तावनाक मूल मे पत्रिकाक स्वरूपक कल्पनाक संगहि एहि पत्रिकाक नियमित प्रकाशनक लेल आर्थिक जुटानक योजना केँ सार्वजनिक केनय रहल छल । एहि प्रस्तावनाक संगहि भारती-मंडनक प्रकाशनक जतन व्यावहारिक रूपें शुरू भेल छल । पत्रिकाक संस्थापक-सह-प्रबंधक तारानंद झा ‘तरुण’ एकर उपरांते निरंतर लोकक सहयोग लेल झोड़ा टांगि, साइकल हँकैत कोसक कोस जा क’ व्यक्तिगत भेट करवाक संगहि औसतन सैकड़ा-अधसैकड़ाक हिसावें प्रायः नित्य पत्र लिखव शुरू केलन्हि । 
         मैथिली पत्रिका लेल सहयोगक जुटान कतेक कठिन काज होइछ, एहि बातक अनुमान वैह लगा सकैत छथि, जिनका एहि मादे किछुओ टा अनुभव होइन्ह । पत्रिकाक प्रबंधक लग पूँजीक नाम पर किछुओ ने छलन्हि । पत्रिकाकक प्रकाशन अवधि (1995-2006) वा तकर बहुत बादो धरि पारिवारिक कारणें कर्ज मे डूबल रहलाह । मुदा पत्रिकाक एक अंकक प्रकाशन आ वितरणक औसतन पच्चीस हजार लगभग खर्चक जोगाड़ ओ लोकक सहयोग सँ करैत रहलाह । पत्रिकाक सुचारू प्रकाशन लेल कएक तरहक सदस्यता योजना हुनके संकल्पना थिक । प्रकाशनक एहि जतन मे घनघोर अनुरोध, दुत्कार, अपमान, मान, अनादर, आदर आ सहयोग-असहयोगक कतेको घटना निहित अछि । ई क्रम पत्रिकाक 12 अंक धरि चलैत रहल, जकर बाद पत्रिकाक प्रकाशन संभव नहि भ’ सकल । 
        एहु बातक उल्लेख आवश्यक अछि जे पत्रिकाक संपादक केदार काननक लेल सेहो ई अवधि घोर आर्थिक संघर्षक छल । एना रहितो रचनाक संशोधन संयोजन सँ ल’ ’ लेटर प्रेसक छपल कॉपी केर प्रूफ देखवा धरि हुनक मेहनति आ समर्पण अद्बुत छल । एहि तरहें अपन-अपन आर्थिक अभावक बावज़ूद पत्रिकाक दू प्रमुख खाम्ह पत्रिका क ठाढ़ क’ ऊँच राखवा मे निष्ठा सँ लागल रहलाह ।
एहि प्रस्तावनाक ‘भारती-मंडन’ पत्रिकाक प्रकाशनक इतिहास मे पर्याप्त महत्व छैक । समय समय पर एहि ब्लॉग पर पत्रिकाक प्रबंधकीय दस्तावेज सब केँ भूमिका सहित उपलब्ध करेवाक प्रयास रहत । जाहि सँ ‘भारती-मंडन’ सन महत्वक पत्रिकाक लेल प्रबंधकीय संघर्षक सेहो परिचय भेटि सकय, जे पत्रिका मात्र देखि क’ बूझव कठिन अछि ।
(1)
(2)
(3)
(4)