एहि ब्लागक कोनो सामग्री केर अव्यावसायिक आ दुर्भावना सँ रहित उपयोग करबा मे कोनो हर्ज नहि अछि । शर्त एतबै जे स्रोतक आ रचनाकारक स्पष्ट उल्लेख करी । तरूण निकेतनक पता पर अथवा ई-मेल पता-tarunniketan@gmail.comपर एकर सूचना अवश्य पठा दी । कोनो सामग्रीक उपयोग जाहि रूप मे भेल होई से पठा सकी तँ नीक लागत ।

Tuesday, September 30, 2014

माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ (भगती वंदना-6)

माया मोहक मकड़जाल मे फँसि अहँ केँ बिसरेलहुँ
माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ ।

हम अवोध सुत हमरा सदिखन ज्ञानक रहल अभाव
जिनगी पूर्ण बिता के जननी आँखि फूजल अछि आब
चरण-शरण तजि अहँकेर माता हम बहुते पछतेलहुँ
माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ ।

की आबहु नहि हे माँ अपने करब हमर उद्धार
आनक नहि आशा अछि कनियो स्वार्थी सब संसार
रहि रहि मोन पड़ैत अछि हमरा जे हम पाप कमेलहुँ
माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ ।

विनती सुनी तरूण सुत केर माँ दया दृष्टि दर्शाबी
बूझि अनाथ नेना हे माता आबहु कोर लगाबी
अहाँ सँ बढ़ि केँ नहि क्यो अप्पन ई ने हम बुझि पेलहुँ
माँ हम जिनगी व्यर्थ गमेलहुँ ।


मलाढ़ : 25.04.2003

No comments:

Post a Comment