कर्म जे हो मुदा सब निपुण बात मे
हाथ सुतरय अपन सब रहय
घात मे ।
के सज्जन के दुर्जन ई
जानब कठिन
अछि कौवे अधिक हँस केर
पाँत मे ।
होइछ सगिरो पुछारी एखन
फूसि केर
सत्य कानय कतहु ठाढ़ भ’ कात मे ।
वैह नेता सफल अछि एखन
देश मे
हो कि अन्तर जकर मोन आ
गात मे ।
बढ़ि रहल जग एखन चैलि सौ
केर धेने
अछि फँसल देश एखनहु छह
सात मे ।
बहि रहल अछि हवा आइ उनटे
‘तरूण’
हाथ कंगन ससरि ऐल अछि
लात मे ।
14-07-1994 : मलाढ़.
कर्णामृत ( फरवरी-मार्च,
1997 )
मे प्रकाशित ।
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