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Friday, September 12, 2014

कर्म जे हो मुदा सब निपुण बात मे

कर्म जे हो मुदा सब निपुण बात मे
हाथ सुतरय अपन सब रहय घात मे ।

के सज्जन के दुर्जन ई जानब कठिन
अछि कौवे अधिक हँस केर पाँत मे ।

होइछ सगिरो पुछारी एखन फूसि केर
सत्य कानय कतहु ठाढ़ भकात मे ।

वैह नेता सफल अछि एखन देश मे
हो कि अन्तर जकर मोन आ गात मे ।

बढ़ि रहल जग एखन चैलि सौ केर धेने
अछि फँसल देश एखनहु छह सात मे । 

बहि रहल अछि हवा आइ उनटे तरूण
हाथ कंगन ससरि ऐल अछि लात मे ।


14-07-1994 : मलाढ़.
कर्णामृत ( फरवरी-मार्च, 1997 ) 
मे प्रकाशित ।



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