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Sunday, September 28, 2014

जननी हरू हमर दुख भारी (भगवती वंदना-4)

जननी हरू हमर दुख भारी
क्षमा करी आबहु माँ हमरा सब अपराध बिसारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।

पापक असह बोझ सँ धरतीक मन अछि जनु अकुलायल
दुर्जन केर अत्याचारें सज्जन अछि डरे नुकायल
करबा ल परित्राण जगत केर दुर्जन केँ संहारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।

एहि स्वार्थी जग सँ हम जननी भेलहुँ आइ निराश
एक अहीं पर अछि हे जननी हमर अटल विश्वास
होयत पूर्ण कोना माँ मन केर आसक रिक्त बखारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।

अहंकारवश मन आन्हर बनि आइ हमर बौरायल
उचित अनुचितक ज्ञान जेना माँ सबटा हमर बिलायल
बीच भंवर मे जिनगीक नैया, मैया अहाँ सम्हारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।

लोभ-मोह-मद केर जंगल मे हम छी आइ हरायल
हमरा मन दर्पण मे लागय पापक मैल समायल
सुत तरूण क विनती सुन जननी पापक मैल पखारी
जननी हरू हमर दुख भारी ।


अन्दौली : 16.09.2003

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