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Tuesday, May 16, 2017

तीन टा गीत

ई तीनू गीत एकहि श्रृंखलामे लिखल गेल छैक । देशक वर्तमान स्थिति आ भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्थाक प्रति घोर चिंताक बादो एहि श्रृंखलाक गीत मे उमेद बाँचल छै - उमेद जे कालचक्र सब दिन एकहि रंग नहि रहतै, स्थिति बदलतै । एहि तीनू गीतक प्रकाशन ‘देसिल बयना’, हैदराबादक मई2017 अंक (स्मारिका)  मे भेल छैक ।


[1.] 

कहुना के हासिल हो सत्ता

एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता
निष्कंटक हो राज सुरक्षित रहय हमर सब किछु अलबत्ता ।

बुद्धिक ठेकेदार स्वयं बनि सदति मंचसँ दी हम भाषण
नैतिकता केँ राखि ताक पर बैसि ल’ झूठक हम आसन
पाबि सकी जहिसँ दिल्ली संगहि पटना लखनउ कलकत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।

अपन दोख सब झाँपि सदति हम अनकर दोख उघारय चाही
हमर विरोधी हो खाहें क्यो सबकेर ओधि उखाड़य चाही
भीतर बरू फोंक हो सब किछु ऊपर सँ मोटगर हो गत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।

कतहु कही हम देशक सेवक कतहु स्वयं केँ कही सिपाही
आनक जे उपलब्धि कोनो हो तकर मानि नहि देबय चाही
देशक हित नित बात करी हम कर्म क्षेत्रसँ रही निपत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता । 

जँ किछु जनता केँ देबा हित दोसर क्यो दै अछि आश्वासन
तँ ओकरोसँ आगू बढ़ि हम कही देब मुफ्ते मे राशन
संगहि रहबा ल’ मकान आ पहिरे हित सब कपड़ा लत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।

पैघ-पैघ जे लोक तकर हम सदिखन माथ झुकाबय चाही
अपना दल केर लेल नुकौआ मोटगर राशिक करी उगाही
करी जोगाड़ सदति निज पद हित वेतन सँ भरिगर हो भत्ता ।
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।

हमर चरित्रक लेखा-जोखा जानि सकत कहियो दोसर की
हमरा आगू मे हमरा सँ दोसर कहू बनत सेसर की
आनक खेल बिगाड़ै खातिर डगर बाट हम कोड़ी खत्ता
एक मात्र अछि लक्ष्य हमर जे कहुना के हासिल हो सत्ता ।
***

[2.] 

कोना परस्पर प्रेम उमड़तै

जानी नहि ई देश हमर जे आर कतय धरि जा क’ रुकतै
झूठक सघन अन्हरिया बीतत, सत्यक सुरूज क्षितिज पर उगतै ।

मानव अछि मानव केर दुश्मन, दानवता सब पर भारी अछि
ऊपर सँ जे गोर भुभुक्का, भीतर सँ ओतबै कारी अछि
जानी नहि दानवतारूपी, साँप कखन बिअरि मे ढुकतै
जानि नहि ई देश हमर जे आर कतय धरि जा क’ रुकतै।

जे सब चोर उचक्का लंपट, वैह आइ संतक बाना मे
धर्मक बाट चलय जे चाहै, पकड़ि बन्हाबे ओ थाना मे
जानि नहि जे अनाचार केर, कहिया धरि तांडव ई चलतै
जानि नहि ई देश हमर जे आर कतय धरि जा क’ रुकतै ।

अल्ला ओ भगवानो लागय, लोकक डर सँ जेना पड़ायल
मंदिर-मस्जिद केर झगड़ा मे, देशक राजनीति ओझड़ायल
जानि नहि एहि चक्रव्यूह सँ, कहिया धरि ई देश उबरतै
जानि नहि ई देश हमर जे आर कतय धरि जा क’ रुकतै ।

जाति धर्म ओ सम्प्रदाय मे, कहिया धरि हम रहब बँटायल
अपन सहोदर के हाथें कि होइत रहब एहिना हम घायल
आबहु मिलि हम तरुण विचारी, कोना परस्पर प्रेम उमड़तै
जानि नहि ई देश हमर जे आइ कतय धरि जा क’ रुकतै ।
***

[3.] 

कालचक्र ई एक रंग नहि

कालचक्र ई एक रंग नहि सब दिन चलिते रहतै
परिस्थिति खाहें जे किछु हो आइ नहि काल्हि बदलतै।

सदति होइत ने रहतै एहिना स्वार्थक नांगट नाच
हारत फूसि एक दिन पाओत विजय अवश्ये  साँच
होयत पापक अंत चतुर्दिक धर्मक ध्वजा फहरतै
कालचक्र ई एक रंग नहि सब दिन चलिते रहतै ।

रहय  ध्यान  ई  सदति आस  केर दीप जरौने राखी
मिटा  सकी  अस्तित्व  ओकर हम, जे मानवताघाती
दानवता  केर  मकड़जाल  सब तखनहि जाय उजड़तै
कालचक्र ई एक रंग नहि, सब दिन चलिते रहतै ।

जनता केर शोषक जे तकरा हम चिह्नित क’ पाबी
संगहि  प्रतिगामी  सत्ता  जे तकरा  दूर  भगाबी
रची एहेन इतिहास जाहि सँ देशक भाल चमकतै
कालचक्र ई एक रंग नहि सब दिन चलिते रहतै ।

प्रजातंत्र अछि देश जतय जनता सबसँ बलशाली
जनते केर बल पर निर्भर अछि फगुआ-ईद-दीवाली
देशक जनता जागि उठय तँ क्रांतिक लहरि उमड़तय
कालचक्र ई एक रंग नहि, सब दिन चलिते रहतै ।

रातिक बादे दिन होइत अछि चिर शाश्वत संदेश
पतझड़ केर बादे बसंत केर भू पर होइछ  प्रवेश
तरुण तिमिर दुख केर मेटत आ सुख केर किरण छिटकतै
कालचक्र ई एक रंग नहि सब दिन चलिते रहतै ।
 ***