महगी ईजोतक अछि सस्ता अन्हार जतय
रहतय ओतय लोक कोना जातिक दीवार जतय ।
गुण केर जे ग्राहक अछि तकरा के चिन्हि सकत
सब तरि अछि दुर्गुण केर लागल बजार जतय ।
अन्न पानि वायु की बाँचल प्रदूषण सँ ?
बाँचि सकत प्राण कोना विष केर भंडार जतय ।
प्रगतिक जे नारा अछि लागय सब फूइस जोकाँ
घृणा द्वेष हिंसा अछि जिनगीक आधार जेतय ।
मन केर जे व्यथा ‘तरूण’ ककरा सुनायब हम
कानक बहीर संग निष्ठुर संसार जतय ।
सुपौल : 04.08.1996 मध्यरात्रि
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