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Saturday, September 6, 2014

महगी ईजोतक अछि सस्ता अन्हार जतय

महगी ईजोतक अछि सस्ता अन्हार जतय
रहतय ओतय लोक कोना जातिक दीवार जतय ।

गुण केर जे ग्राहक अछि तकरा के चिन्हि सकत
सब तरि अछि दुर्गुण केर लागल बजार जतय ।

अन्न पानि वायु की बाँचल प्रदूषण सँ ?
बाँचि सकत प्राण कोना विष केर भंडार जतय ।

प्रगतिक जे नारा अछि लागय सब फूइस जोकाँ
घृणा द्वेष हिंसा अछि जिनगीक आधार जेतय ।

मन केर जे व्यथा तरूण ककरा सुनायब हम
कानक बहीर संग निष्ठुर संसार जतय ।

सुपौल : 04.08.1996 मध्यरात्रि


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