रेखांकन : कुमार सौरभ _________________________ |
आगि ओ मिझैत की जे घर-घर मे धधकल अछि
बाँचत
की जान ओ जे फँसरी पर लटकल अछि ।
अपनहि
सँ कुड़हरि ल’ टांग अपन काटि रहल
ककरा
बुझाओत के बुद्धि सबहक सटकल अछि ।
एकहु
बताहक इलाज भेनय मोश्किल सन
की
होयत दुनिया केर सब
केर सब सनकल अछि ।
गौतम
आ गाँधीक आदर्शक जाप करैत
छगुंता
एहि देशहु मे हिंसेटा भरकल अछि ।
आयुध
केर ढेर पर दुनिया ई बमकि रहल
होइछ
नित युद्ध लोक युद्धे मे परिकल अछि ।
[मलाढ़ : 26.07.1984 / देसिल बयना, हैदराबाद द्वारा 10 मई 2015 केँ आयोजित ‘मिथिला विभूति पर्वक’अवसर पर बहरायल स्मारिका मे प्रकाशित ।]