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Sunday, September 7, 2014

फुदकि-फुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी

फुदकि-फुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश
फुदकैत रहू अहूँ जिनगी मे मेटू सभक कलेश ।

बिनु बजनहि किछु कहय अहाँ सँ नित स्वर्णीम विहान
रहय अहूँक मन सदति पहिरने स्वर्णीम नव परिधान ।
रहल करू नित अहाँ मुदितमन घर हो या परदेश
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।

माथ ऊँच क सदति अहाँ सँ अविचल कहय पहाड़
रही बनल दृढ़ब्रती लक्ष्य हित सहि दुख बिपति हजार ।
ल संकल्प जगत कल्याणक पथ मे करू प्रवेश
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।

कोइली कुहकि-कुहकि सुनिवय अछि सदति मधुर संगीत
ओ नित कहय अहाँ सँ बाजू, बोल मधुर सन मीठ ।
बसल रही नित अहाँ जाहि सँ सब केर हृदय प्रदेश
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।


पीजड़ा केर सुगा बाजय अछि, ओ जे अहाँ सीखाबी
कहय अहाँ सँ कठिन काज जे तकरहु सरल बनाबी ।
सहजहिं अभ्यासे सब संभव विद्या-बुद्धि विशेष
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।

बाजय कल-कल स्वर मे सदिखन गतिमय सरिता नीर
क मन स्वच्छ बढ़ी निज पथ पर अहूँ हरय जग पीर ।
सीखी किछु नित तरूण प्रकृति सँ निधि अछि जकर अशेष
फुदकि-पुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।

अन्दौली : 16.09.03



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