फुदकि-फुदकि नित चिड़ै-चुनमुनी
दै अछि किछु संदेश
फुदकैत
रहू अहूँ जिनगी मे मेटू सभक कलेश ।
बिनु बजनहि किछु कहय
अहाँ सँ नित स्वर्णीम विहान
रहय अहूँक मन सदति
पहिरने स्वर्णीम नव परिधान ।
रहल करू नित
अहाँ मुदितमन घर हो या परदेश
फुदकि-पुदकि नित
चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।
माथ ऊँच क सदति अहाँ सँ
अविचल कहय पहाड़
रही बनल दृढ़ब्रती
लक्ष्य हित सहि दुख बिपति हजार ।
ल संकल्प
जगत कल्याणक पथ मे करू प्रवेश
फुदकि-पुदकि नित
चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।
कोइली कुहकि-कुहकि
सुनिवय अछि सदति मधुर संगीत
ओ नित कहय
अहाँ सँ बाजू, बोल मधुर सन मीठ ।
बसल रही नित अहाँ जाहि सँ सब केर हृदय प्रदेश
बसल रही नित अहाँ जाहि सँ सब केर हृदय प्रदेश
फुदकि-पुदकि नित
चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।
पीजड़ा केर सुगा बाजय
अछि, ओ जे अहाँ सीखाबी
कहय अहाँ सँ कठिन काज
जे तकरहु सरल बनाबी ।
सहजहिं
अभ्यासे सब संभव विद्या-बुद्धि विशेष
फुदकि-पुदकि नित
चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।
बाजय कल-कल स्वर मे
सदिखन गतिमय सरिता नीर
क मन स्वच्छ बढ़ी निज
पथ पर अहूँ हरय जग पीर ।
सीखी किछु नित तरूण
प्रकृति सँ निधि अछि जकर अशेष
फुदकि-पुदकि नित
चिड़ै-चुनमुनी दै अछि किछु संदेश ।।
अन्दौली
:
16.09.03
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