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Thursday, January 22, 2015

आयल नव वर्ष मुदा

साभार- deviantart

आयल नव वर्ष मुदा नवका उत्साह कतय
पुरने केर पुनरावृत्ति नवता प्रवाह कतय

रोजी आ रोटी केर जेहिठाँ समस्या अछि
दोसर किछु आरो की, होयत पुनि चाह ओतय

कुर्सी हथियेबा ल ब्याकुल अछि लोक जखन
आनक हित अनका पुनि होयत परवाह कतय

ककरो नहि चैन, लोक सगरो बेचैन बनल
होयत पुनि तरुण कहू सुख सँ निर्वाह कतय

जागल अछि हिंसा मे लोकक विश्वास जखन
पायब अहिंसा केर खेवा लय नाह कतय ।


[मलाढ़ :17.12.1984]

Wednesday, January 21, 2015

अजीता बेटी बड़ बुधियारि


अजीता बेटी बड़ बुधियारि, अजीता बेटी बड़ बुधियारि
मधुर मधुर जे बात बजय अछि,दिये ने ककरो गारि
अजीता बेटी बड़ बुधियारि ।

कौखन पढ़य किताब, खेलावय कौखन अटकन-मटकन
माए बाप केर टहल टिकोरा मे जे रहय सदतिखन
क्षण मे महल बनावय माटिक, क्षण मे दिये उजारि
अजीता बेटी बड़ बुधियारि ।

करय निहोरा रानी बहिनक, सुनवय कथा पिहानी
बात-बात मे टोक लगावय, चाहय सब किछु जानी
सौ मे सुन्नरि जे गुलाब सन लागय अछि सुकुमारि
अजीता बेटी बड़ बुधियारि ।

कौखन रुसि रहय पुनि कौखन, गीत मगन भ गावय
बात बात मे तरुण पिता केर सदिखन हृदय जुड़ावय
फूल बहीन, बबुआ भैया संग माइक परम दुलारि
अजीता बेटी बड़ बुधियारि ।

[मलाढ़ : 05.01.1986 / हाल-चाल (पटना) क दिसम्बर 1986 अंक मे प्रकाशित ।]

Saturday, January 17, 2015

स्नेहक शुचि सरबर मे अपना केँ बोरि ली


एक बात जनहित मे जिनगी सँ जोड़ि ली
स्नेहक शुचि सरबर मे अपना केँ बोरि ली ।

मनुष्य छी मनुष्य बनि रहू सदति समाज मे
सदिखन सब व्यस्त रहू अपन-अपन काज मे ।
घमंडक अपन घैल पटकि-पटकि फोड़ि ली
स्नेहक शुचि सरबर मे अपना केँ बोरि ली ।

भारत अछि देश अहँक भारतीय अहाँ बनू
भाषा आ प्रांत निमित्त अगिन जाल जुनि बुनू ।
एकताक सूत्र मे देश केँ संगोरि ली
स्नेहक शुचि सरबर मे अपना केँ बोरि ली ।

राखू जुनि हृदय मध्य कनिको टा कलह द्वेष
बाँटक प्रयास करू जन-जन केर दुख कलेस ।
त्यागि सकल दुर्गुण केँ सद्गुण निचोड़ि ली
स्नेहक शुचि सरबर मे अपना केँ बोरि ली ।

माइ केर सपूत बनू देश केर बचाउ लाज
करू सदति सद्प्रयास वर्गहीन हो समाज ।
छूत आ अछूत केर भेद भाव तोड़ि ली
स्नेहक शुचि सरबर मे अपना केँ बोरि ली ।

भारत केर ‘तरुण’ अहाँ देश केर उठाउ भार
घर-घर सुशिक्षाक मिलि जुलि करू प्रचार ।
घृणा क्रोध हिंसा केँ जड़ि सँ मरोड़ि ली
स्नेहक शुचि सरबर मे अपना केँ बोरि ली ।


[21-04-1984 केँ सांझ 6:00 बजे आकाशवाणी दरभंगाक ‘गाम घर’ कार्यक्रम मे साम्प्रादायिक सद्भाव पर आयोजित कवि गोष्ठि मे पढ़ल गेल ।]

Thursday, January 8, 2015

ई असह्य शीतलहरि


ई असह्य शीतलहरि जन-जन केँ मारि गेल ।
जनु खुशीक दूध केँ, खटाई दुःखक फारि गेल ।

मंगल हो वर्ष नवल सब केर छल कामना
जनु हठात कामनाक रथ क्यो उनारि गेल ।

जाड़क झमारल पर पछबा बसात बुझू
झरकल पर बाकुट भरि नोन जेना ढारि गेल ।

सूर्य केर प्रकाश पर कर्फ्यू जनु लागल हो
बलगर कुहेस आइ हुनको पछाड़ि गेल ।

मानव प्रकृति बीच भेलै संघर्ष तरूण
जीतल प्रकृति पुनः मानव ई हारि गेल ।


[मलाढ़ : 06.01.1986 / 19.01.1986 केर मिथिला मिहिर रविवासरीय मे प्रकाशित]