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Thursday, September 4, 2014

शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार

धन्य देश केर प्रजातंत्र ई धन्य एकर सरकार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

वाणी सँ चिन्तित गामक हित लागय सदिखन सत्ता
मुदा विकासक जोत पहुँचि पाबय नहि गामक हत्ता
घर घर मे जहिठाँ भरहलै स्वार्थक मंत्रोच्चार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

खुनि रहल सब एक दोसरक घर केर आगू खत्ता
अद्भुत अर्थतंत्र अछि जहिठाँ बेतन सँ बढ़ि भत्ता
कर्तव्यक परवाह नै ककरो चाहय बस अधिकार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

वोटक खातिर नेता जहिठाँ रचय प्रपंचक जाल
सम्प्रदाय आ जातिवाद केर आगि लेस तत्काल
मेटा समाज क प्रेम शांति सत्ता पकड़य रफ्तार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

कतहु हवाला कतहु घोटाला देशक निकलि रहल दिवाला
अमीयक भरमे पीबी रहल सब जहिठाँ छाँकी भरि भरि हाला
उलटे जतय बसात बहय अछि उलटे सब व्यवहार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

गाजा, चरस, अफीमक संगहि रूचिकर लागय भांग
नेना तरूणक तरूण बूढ़ के खींचय जहिठाँ टाँग
जतय दहेजक बलि चढ़ि नारी करथि नित्य चित्कार
शहरक बाट इजोत झकाझक गामक बाट अन्हार ।

सुपौल : 4.08.1996

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