साभार- पोस्ट.जागरण.कॉम
ई असह्य
शीतलहरि जन-जन केँ मारि गेल ।
जनु
खुशीक दूध केँ, खटाई दुःखक फारि गेल ।
मंगल हो
वर्ष नवल सब केर छल कामना
जनु हठात
कामनाक रथ क्यो उनारि गेल ।
जाड़क
झमारल पर पछबा बसात बुझू
झरकल पर
बाकुट भरि नोन जेना ढारि गेल ।
सूर्य
केर प्रकाश पर कर्फ्यू जनु लागल हो
बलगर
कुहेस आइ हुनको पछाड़ि गेल ।
मानव
प्रकृति बीच भेलै संघर्ष ‘तरूण’
जीतल
प्रकृति पुनः मानव ई हारि गेल ।
[मलाढ़ : 06.01.1986
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Thursday, January 8, 2015
ई असह्य शीतलहरि
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