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Thursday, January 8, 2015

ई असह्य शीतलहरि


ई असह्य शीतलहरि जन-जन केँ मारि गेल ।
जनु खुशीक दूध केँ, खटाई दुःखक फारि गेल ।

मंगल हो वर्ष नवल सब केर छल कामना
जनु हठात कामनाक रथ क्यो उनारि गेल ।

जाड़क झमारल पर पछबा बसात बुझू
झरकल पर बाकुट भरि नोन जेना ढारि गेल ।

सूर्य केर प्रकाश पर कर्फ्यू जनु लागल हो
बलगर कुहेस आइ हुनको पछाड़ि गेल ।

मानव प्रकृति बीच भेलै संघर्ष तरूण
जीतल प्रकृति पुनः मानव ई हारि गेल ।


[मलाढ़ : 06.01.1986 / 19.01.1986 केर मिथिला मिहिर रविवासरीय मे प्रकाशित]

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