अरपल जननी अहीं पर हे ! जिनगीक सब भार
एलहुँ हारि शरण मे हे माँ अहँक दुआर ।
अपन बूझि जकरे अपनेलहुँ, सब किछु तकरे हाथ गमेलहुँ
नोरे नयन भरल अछि हे, नित बहय टघार
अरपल जननी अहीं पर हे ! जिनगीक सब भार ।
अहँ थिकहुँ जननी जगतारिणी, हे अम्बे भव केर भय हारिणी
हरू जननी मम भव भय हे, कय भव सँ पार
अरपल जननी अहीं पर हे ! जिनगीक सब भार ।
जिनगी तरूण भरल घट पापक, दुख अछि असह सहब त्रितापक
मेटी पाप ताप सब हे, माँ विनय हमार
अरपल जननी अहीं पर हे जिनगीक सब भार ।
मलाढ़ : 26.06.1984
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