जे परस्पर रहय मित्र
शत्रु बनल ।
पानि मे माछ केर थाह
अछि नहि कतहु
मुदा बखरा मे नौ-नौ
कुटिया पड़ल ।
मूर्ख जन बुद्धि केर आइ
ठेका लेने
मूर्ख सबके बनौने बढ़ल
जा रहल ।
देश केर दुर्दशा पर नहि
ककरो नजरि
हित कोना साधि ली ताहि
मे सब बझल ।
अछि आबहु समय जागू चेतू
तरुण
चीन्हि भगबू जे देशक
अछि दुश्मन अड़ल ।
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[मलाढ़ : 05.09.1990 / देसिल बयना, हैदराबाद द्वारा 10 मई 2015
केँ आयोजित ‘मिथिला विभूति पर्वक’ अवसर पर बहरायल स्मारिका मे
प्रकाशित ।]
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