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Saturday, August 30, 2014

दोख अपन झाँपि करय अनका उघार लोक

दोख अपन झाँपि करय अनका उघार लोक
बूझि रहल अपना केँ सब सँ बुधियार लोक ।

विद्या विवेकक नहि सम्प्रति अछि मानि कोनो
मानि रहल धन केँ अपन जिनगीक आधार लोक ।

प्रेमक नहि दरस कतहु देखबा मे आबि रहल
लागल अछि करबा मे स्वार्थक व्यापार लोक ।

जानि नहि तरूण कतय दुनिया ई भागि रहल
तकनहु नहि भेटैत अछि जग मे उदार लोक ।



21-01-1995 / मलाढ़.
[परिवेश (मासिक) सिंदरी के प्रेषित / संभवतः प्रकाशित]

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