दोख अपन झाँपि करय अनका
उघार लोक
बूझि रहल अपना केँ सब सँ
बुधियार लोक ।
विद्या विवेकक नहि
सम्प्रति अछि मानि कोनो
मानि रहल धन केँ अपन
जिनगीक आधार लोक ।
प्रेमक नहि दरस कतहु
देखबा मे आबि रहल
लागल अछि करबा मे
स्वार्थक व्यापार लोक ।
जानि नहि तरूण कतय
दुनिया ई भागि रहल
तकनहु नहि भेटैत अछि जग
मे उदार लोक ।
21-01-1995 / मलाढ़.
[परिवेश (मासिक) सिंदरी के प्रेषित / संभवतः प्रकाशित]
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